Monday, April 15, 2013

Shamsher Bahadur Singh ( शमशेर बहादुर सिंह )

 

शमशेर बहादुर सिंह (जन्म:१३ जनवरी १९११ - निधन:१२ मई १९९३) आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्र...ेजी कवि एजरा पाउण्ड से प्रभावित है। ये कबीर सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए।

1 जीवन परिचय
2 कार्यक्षेत्र
3 महत्वपूर्ण कृतिया
4 पुरस्कार व सम्मान
5 सन्दर्भ

जीवन परिचय
 
शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह का जन्म मुजफ्फरनगर के एलम ग्राम में १३ जनवरी, १९११ को जाट परिवार में तारीफ सिंह के पुत्र के रूप में माँ प्रभूदेवी की कोख से हुआ । मृत्यु 12 मई 1993 को अहमदाबाद में। देहरादून ननिहाल था। देहरादून में प्रारंभिक शिक्षा हुई । बाद की शिक्षा गोंडा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। १९३५-३६ में उकील बंधुओं से कला प्रशिक्षण। दिल्ली से वे गुजरात चले गए तथा अहमदाबाद में उनकी शिष्या श्रीमती रंजना अरगडे के साथ रहे । अहमदाबाद में उनपर शोधकर्ती रंजना अरगडे का निवास ही उनका निवास रहा । डॉ. श्रीमती रंजना अरगडे अब वहीं प्रोफेसर और विदुषी हैं। डॉ. श्रीमती रंजना अरगडे ने गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए मानवता के नाते जीवन पर्यंत उनकी सेवा की और अंत समय में मुखाग्नि दी। शमशेर के भाई तेज बहादुर उनसे दो साल छोटे थे। उनकी मां परम देवी दोनों भाइयों को राम-लक्ष्मण की जोडी कहती थीं। शमशेर 8-9 साल के थे जब वे संसार छोड गयीं। लेकिन यह जोडी शमशेर की मृत्यु तक बनी रही।

उनका विवाह सन् १९२९ में धर्मदेवी के साथ हुआ। १९३१ में उन्होंने कविता लिखना शुरू किया। शमशेर चौबीस वर्ष के थे जब उनकी पत्नी धर्मवती छ: वर्ष के साथ के बाद 1935 में टीबी से दिवंगत हुई। जीवन का यह अभाव कविता में विभाव बनकर हमेशा मौजूद रहा। काल ने जिसे छीन लिया, उसे अपनी कविता में सजीव रखकर शमशेर काल से होड लेते रहे। बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी दो पुत्रियाँ भी हैं।

सन १९३९ में सुमित्रानंदन पन्त ने नरेन्द्र शर्मा के साथ 'रूपाम' नामक पत्र निकाला जिसके शमशेर सहायक संपादक बने। सन १९४० में 'कहानी' नामक पत्र का संपादकत्व संभाला और १९४६ तक बम्बई से प्रकाशित 'नया साहित्य' के संपादन का काम किया। १९४८ से १९५४ तक 'माया' के सहायक संपादक रहे। साथ ही 'नया पथ' और मनोहर कहानियों को भी सहयोग दिया। सन १९६५ से १९७७ तक दिल्ली विश्व-विद्यालय में उर्दू-हिंदी कोष का संपादन किया, जो राज कमल द्वारा प्रकाशित हुआ ।

शमशेर उन कवियों में थे, जिनके लिए मा‌र्क्सवाद की क्रांतिकारी आस्था और भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा में विरोध नहीं था। शमशेर ने अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्य साधना में दिया।
कार्यक्षेत्र

'रूपाभ', इलाहाबाद में कार्यालय सहायक (१९३९),
'कहानी' में त्रिलोचन के साथ (१९४०),
'नया साहित्य', बंबई में कम्यून में रहते हुए(१९४६,
माया में सहायक संपादक(१९४८-५४),
नया पथ और मनोहर कहानियाँ में संपादन सहयोग।
दिल्ली विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान की एक महत्वपूर्ण परियोजना 'उर्दू हिन्दी कोश' का संपादन (१९६५-७७),
प्रेमचंद सृजनपीठ, विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष (१९८१-८५)

महत्वपूर्ण कृतिया

कविता-संग्रह :

कुछ कविताएं(१९५६),
कुछ और कविताएं(१९६१),
चुका भी नहीं हूं मैं(१९७५),
इतने पास अपने(१९८०),
उदिता - अभिव्यक्ति का संघर्ष(१९८०),
बात बोलेगी (१९८१),
काल तुझसे होड़ है मेरी (१९८८)।

निबन्ध-संग्रह : दोआब

कहानी-संग्रह : प्लाट का मोर्चा

शमशेर का समग्र गद्य कु्छ गद्य रचनायें तथा कुछ और गद्य रचनायें नामक पुस्तकों में संग्रहित हैं !
पुरस्कार व सम्मान

१९७७ में 'चुका भी हूँ नहीं मैं' के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित एवं मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के "तुलसी" पुरस्कार से सम्मानित।
सन् १९८७ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा "मैथिलीशरण गुप्त" पुरस्कार से सम्मानित।

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